महावीर स्वामी का जीवन और उपदेश

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       महावीर का जन्म ५९९ ई० पू० में हुआ था। वे बहत्तर वर्षों तक जीवित रहे । ५६९ ई॰ पू॰ में उन्होंने गृह-त्याग किया। उन्होंने ५५७ ई० पू० में सर्वज्ञता प्राप्त की तथा ५२७ ई० पू० में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। वे अन्तिम तीर्थंकर थे ।

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      महावीर का जीवन सत्यवादिता, आर्जव तथा पवित्रता से ओत-प्रोत था। उनमें ये गुण आत्यन्तिक रूप में विद्यमान थे। वे आजीवन अकिंचन बन कर रहे ।


       महारानी त्रिशला तथा कुण्डलपुर के महाराज सिद्धार्थ उनके माता-पिता थे । त्रिशला को प्रियकर्णी के नाम से भी जाना जाता है। 'महा' का अर्थ महान् तथा 'वीर' का अर्थ उदात्त नायक होता है। तीर्थ का शाब्दिक अर्थ होता है घाट जो पार उतरने का साधन है । इस शब्द में निहित लाक्षणिकता के अनुसार इसका तात्पर्य पथ-प्रदर्शक या उस दर्शन से है जो किसी को जन्म-मरण के आवर्तन के महोदधि को पार करने की क्षमता प्रदान करता है । 'कर' का अर्थ कर्ता होता है। 'तीर्थ' तथा 'कर' इन दोनों शब्दों का समवेत अर्थ पवित्र जैन अर्हत होता है।

            महावीर जैन-धर्म के संस्थापक नहीं थे। उन्होंने जैन - सिद्धान्तों को कुछ संशोधनों के साथ व्यवस्थित भर किया था। वे इस धर्म के संस्थापक होने की अपेक्षा सुधारक अधिक थे। जैन तत्त्व शास्त्र के अनुसार काल चक्रों में विभाजित है। यह आधिकारिक रूप से कहा जाता है कि प्रत्येक अर्द्ध चक्र में दीर्घ अन्तरालों के पश्चात् चौबीस तीर्थंकर जैन-सिद्धान्तों की व्याख्या के लिए एक नवीन दृष्टिकोण का प्रयोग करते हैं। महावीर चौबीसवें तीर्थंकर थे और अन्य तीर्थंकरों की भाँति वे भी सर्वज्ञ थे ।


             महावीर को वर्द्धमान (निरन्तर वृद्धि को प्राप्त होने वाला) तथा सन्मति के नामों से भी अभिहित किया जाता था। आठ वर्ष की अल्पायु से ही वे अहिंसादि द्वादश व्रतों का पालन करने लगे थे। वे अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी सेवा श्रद्धा तथा भक्तिपूर्वक किया करते थे । वे एक कुशल राजनयिक थे । वे आजीवन अविवाहित रहे ।


              आत्म-चिन्तन में निमग्न महावीर इस सत्य से परिचित हो गये थे कि सांसारिक सुख क्षणिक हैं और इनसे कर्म का बन्धन सुदृढ़ होता है। वे जानते थे कि संन्यास ही शाश्वत आनन्द की सम्प्राप्ति का साधन है।


               अल्पायु में ही महावीर के स्वभाव में सद्गुणों तथा सदाचार का समावेश हो चुका था जिसे देख कर लोग आश्चर्य चकित रह जाते थे। ध्यान में उनकी अत्यधिक रुचि थी और वे संगीत तथा साहित्य से भी सुपरिचित थे। उनके जीवन के तीस वर्ष इसी प्रकार व्यतीत हुए ।


          वर्द्धमान ने अतीन्द्रिय दृष्टि से देखा कि वे असंख्य जन्म ग्रहण कर चुके हैं। उन्होंने सोचा—‘कितने जन्म व्यर्थ ही बीत गये। मैं स्पष्टतः देख रहा हूँ कि आत्मा कर्म से मूलतः पृथक् है । मैने अपने जीवन के तीस वर्ष व्यर्थ ही नष्ट कर दिये । सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति के लिए मैंने संसार का परित्याग और तप नहीं किया। सभी दुःखों के मूल में विद्यमान आसक्ति का भी निराकरण अभी तक नहीं हो पाया है।'


            राजकुमार वर्द्धमान पश्चात्ताप की अग्नि में जलने लगे। उन्होंने सांसारिकता के परित्याग का निश्चय कर लिया। वे अपने माता-पिता, मित्रों तथा सम्बन्धियों के प्रति आसक्ति से विरत हो गये। उन्होंने द्वादश अनुप्रेक्षाओं अर्थात् जैन-धर्म-ग्रन्थों में उल्लिखित गहन रूप से विचारणीय पदार्थों का चिन्तन किया :

१.समस्त सांसारिक वस्तुएँ अस्थायी हैं ।

२.एकमात्र आत्मा ही अनन्य आश्रय है।

३.संसार अनादि तथा कुटिल है ।

४.आत्मा का एकमात्र परिरक्षक स्वयं आत्मा ही है।

५.शरीर, मन इत्यादि मूलतः आत्मा से पृथक् हैं ।

६.तत्त्वतः आत्मा शुद्ध तथा शरीरादि अशुद्ध हैं।

७.आत्मा के बन्धन की सृष्टि इसमें कर्मास्रव के प्रवेश से होती है ।

८.प्रत्येक व्यक्ति के लिए इस आस्रव का प्रहाण आवश्यक है ।

९.कर्म के नितान्त क्षय के उपरान्त ही कैवल्य की प्राप्ति होती है ।

१०.केवली आकाश के शीर्ष स्थान पर निवास करते हैं ।

१२.संसार में मनुष्य-योनि में जन्म-ग्रहण एवं आत्मा के स्वरूप का ध्यान महानतम सौभाग्य है।

१३.सर्वज्ञ द्वारा वर्णित त्रिरत्न ही एकमात्र नैतिकता है।


         महावीर ने इन द्वादश अनुप्रेक्षाओं पर विचार करने के पश्चात् अन्ततोगत्वा गृह-त्याग का दृढ़ निश्चय कर लिया।

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            महावीर की माता ने कहा- "प्रिय पुत्र, तपस्वी जीवन की कठोरता तुम्हारे लिए असहनीय होगी । अभी उसके लिए बहुत समय है। राज्य के प्रशासन में तुम्हें अपने पिता को सहयोग प्रदान करना चाहिए। कुछ वर्षों के बाद भी तुम अर्हत हो सकते हो।"


            महावीर ने कहा—“श्रद्धेय माता, संसार के समस्त पदार्थ पानी के बुलबुले की भाँति क्षणभंगुर हैं। जो रोग, दुःख, क्लेश तथा मृत्यु का आश्रय-स्थान है, उस संसार में किसी के लिए सुख की सम्प्राप्ति कैसे सम्भव है? मुझे इस संसार का परित्याग करना ही होगा।"


              महावीर ने अपनी सारी सम्पत्ति स्वयं अपने ही हाथों निर्धनों में वितरित कर दी। वे वन में चले गये और जो वस्त्र उन्होंने धारण किये थे, उनका भी परित्याग कर वे पूर्णतः दिगम्बर हो गये । उत्तराभिमुख हो कर उन्होंने कहा- "मैं सिद्धों को प्रणाम करता हूँ।” अपने शिर से केश के पाँच गुच्छों को स्वयं विलग कर वे अर्हत हो गये ।


                  महावीर ने कठोर तप किये। उन्होंने बहुत दिनों तक उपवास किया। वे आत्मा के विशुद्ध स्वरूप का ध्यान करते रहे।


            दिव्य शक्तियों ने महावीर की परीक्षा ली। एक बार रमणीय स्त्री-समुदाय ने उन्हें घेर लिया; किन्तु वे अडिग अविचलित बने रहे। उन्हें सर्वज्ञता की सिद्धि प्राप्त हुई। सर्वज्ञ होने के पश्चात् वे तीस वर्षों तक शान्ति के सन्देश का प्रचार-प्रसार करते रहे। उन्होंने मगध, मिथिला आदि राज्यों का भ्रमण किया जहाँ अनेक राजा उनके शिष्य हो गये।



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FAQ

1. महावीर जयंती कब मनाई जाती है?

महावीर जयंती जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर के जन्म जयंती पर मनाई जाती है। इस त्योहार का तारीख वार्षिक रूप से बदल सकती है, लेकिन आम तौर पर यह मार्च या अप्रैल महीने में आता है।

2. महावीर स्वामी का संक्षेप्त जीवन परिचय क्या है?

महावीर स्वामी का जन्म ५९९ ई० पू० में हुआ था। वे बहत्तर वर्षों तक जीवित रहे और ५६९ ई० पू० में उन्होंने गृह-त्याग किया। उन्होंने ५५७ ई० पू० में सर्वज्ञता प्राप्त की तथा ५२७ ई० पू० में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।

3. महावीर स्वामी के जन्म का स्थान कहां हुआ था?

महावीर स्वामी का जन्म कुण्डलपुर नामक स्थान पर हुआ था, जो वर्तमान में राजस्थान, भारत में स्थित है।

4. महावीर स्वामी के जीवन का अंत कैसे हुआ?

महावीर स्वामी ने ५२७ ई० पू० में निर्वाण प्राप्त किया था। यह तीर्थंकरों के जीवन का अंतिम चरण होता है, जिसे निर्वाण कहा जाता है।

5. महावीर स्वामी के गुरु का नाम क्या था?

महावीर स्वामी के गुरु का नाम रिषभदेव था, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे।

6. महावीर स्वामी ने जैन धर्म की संस्थापना की थी?

नहीं, महावीर स्वामी ने जैन धर्म की संस्थापना नहीं की थी। उन्होंने जैन-सिद्धान्तों को संशोधित किया और इस धर्म को सुधारा था।

7. क्या महावीर स्वामी ने वनवास किया था?

हां, महावीर स्वामी ने अपने जीवन के एक अवसर पर वनवास किया था। उन्होंने गृह-त्याग कर वन में चले जाने का निर्णय लिया था।

8. महावीर स्वामी की शिक्षाएं क्या थीं?

महावीर स्वामी ने अहिंसा, सत्यवादिता, अपरिग्रह, अनेकांतवाद और ब्रह्मचर्य जैसी उच्च शिक्षाएं प्रचारित की थीं।

9. महावीर स्वामी के जीवन का कुछ रोचक तथ्य क्या हैं?

महावीर स्वामी के जीवन में कई रोचक तथ्य हैं। उनके माता-पिता का नाम राजकुमारी त्रिशला और महाराज सिद्धार्थ था। उन्होंने अपने शिर से केश के पाँच गुच्छे विलग करके दिगम्बर हो गए थे। उन्होंने तपस्या और ध्यान में अध्ययन कर ज्ञान की प्राप्ति की थी।

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