पार्श्वनाथ | पार्श्वनाथ भगवान प्रश्नोत्तरी |पार्श्वनाथ चालीसा | पार्श्वनाथ स्तोत्र | पार्श्वनाथ भगवान फोटो |भगवान पार्श्वनाथ का जीवन परिचय | पार्श्वनाथ मंदिर | पार्श्वनाथ का जन्म कहां हुआ था | पार्श्वनाथ जयंती 2023|पारसनाथ भगवान का जीवन चरित्र |
पार्श्वनाथ जी को इन्द्र का अवतार माना जाता है वे काशी नरेश इक्ष्वाकुवंशीय महाराज विश्वसेन के पुत्र थे। उनकी माता का नाम वामादेवी था जो महाराजा महिपाल की पुत्री थीं। वे तेईसवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म ८७२ ई. पू. में पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को हुआ था।
पार्श्वनाथ ने आठ वर्ष की आयु से ही गृहस्थाश्रम के द्वादश व्रतों का अनुपालन प्रारम्भ कर दिया था।
पारसनाथ भगवान का जीवन चरित्र
पार्श्वनाथ सोलह वर्ष की आयु में सिंहासनारूढ़ हो चुके थे। एक दिन उनके पिता विश्वसेन ने उनसे कहा- "हे पुत्र अपने यशस्वी राजवंश की सन्तति-परम्परा को अविच्छिन्न रखने के लिए तुम्हारा विवाह अत्यावश्यक है। राजा नाभि के इच्छानुसार ऋषभ को भी विवाह करना पड़ा था।"
अपने पिता के इन शब्दों से पार्श्वनाथ अत्यन्त भयभीत हो उठे। उन्होंने कहा- "मैं ऋषभ की भाँति दीर्घजीवी नहीं हो सकूँगा मुझे कुछ ही वर्षों तक जीवित रहना है। मैंने अपने जीवन के सोलह वर्ष बाल-सुलभ क्रीड़ाओं में व्यर्थ ही गँवा दिये। तीस वर्ष की आयु में मेरा दीक्षा ग्रहण अनिवार्य है। तब क्या मैं अपूर्ण, अनित्य तथा मायिक सुखों के प्राप्त्यर्थ अल्पावधि के लिए विवाह कर लूँ ?”
पार्श्वनाथ के हृदय में वैराग्य जाग्रत हो उठा। उन्होंने मन-ही-मन विचार किया—“मैंने दीर्घ काल तक इन्द्र के पद का उपभोग किया है, फिर भी सुख के प्रति मेरी तृष्णा का क्षय नहीं हो पाया। जिस प्रकार ईंधन के आधिक्य के अग्नि की ज्वाला का शमन नहीं होता, उसी प्रकार सुखोपभोग से सुख की तृष्णा में वृद्धि ही होती है। उपभोग के समय सुख रुचिकर प्रतीत होते हैं, किन्तु उनके परिणाम निश्चित रूप से अनर्थकारी होते हैं।
" सांसारिक विषयों के प्रति आसक्ति के कारण यह जीव अनादि काल से जन्म,जरा आदि के दुःखों का अनुभव करता आ रहा है। इन्द्रिय-लोलुपता की सन्तुष्टि के लिए वह दुःख के संसार में भ्रमण करता रहता है। वैषयिक तुष्टि के लिए वह नैतिक विधि-निषेध की ओर ध्यान नहीं देता और इस प्रकार जघन्य पापों में लिप्त हो जाता है। ऐन्द्रिय सुखों की प्राप्ति के लिए वह पशु-हत्या करता है। चोरी,लोभ, पर-स्त्री-गमन तथा सभी प्रकार के पापों और अपराधों के मूल में तृष्णा हो विद्यमान है।
"पाप कर्म के परिणाम स्वरूप जीव जन्म-मरण के चक्र में आवद्ध हो जाता है। इसके फल-स्वरूप उसे निम्नतर पशु-योनि में अवतरित होना तथा नरक की यातना का भोग करना पड़ता है। सुख की इस तृष्णा का निर्मम उच्छेद अत्यावश्यक है। मैंने अब तक अपना जीवन व्यर्थ ही गँवाया; किन्तु अब मैं सुखों की अर्थहीन खोज में और अधिक संलग्न न रह कर गम्भीरतापूर्वक सम्यक् आचरण का अभ्यास करूँगा।"
राजकुमार पार्श्वनाथ अनुप्रेक्षा की द्वादश विधाओं से परिचित थे। उन्होंने संसार त्याग का निश्चय कर लिया। अपने माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर वे घर से निकल पड़े । गृह-त्याग के पश्चात् वे वन में चले गये। वहाँ वे पूर्णतः निर्वस्त्र हो गये। उत्तर की ओर जा कर उन्होंने मुक्ति प्राप्त महान् सिद्धों को नमन किया और शिर के केश के पाँच गुच्छों को लुंचित कर वे मुनि या जिन बन गये ।
पार्श्वनाथ ने उपवास का अभ्यास किया। उन्होंने अवधान तथा निष्ठा के साथ अर्हत संघ के अट्ठाईस प्रारम्भिक तथा चौरानबे माध्यमिक व्रतों का अनुपालन किया। ध्यानावस्था में वे आत्म-विस्मृत हो जाते थे। वे विशुद्ध सर्वज्ञता की स्थिति को प्राप्त हो चुके थे। उन्हें सामेदा की पहाड़ी पर आत्यन्तिक मुक्ति की प्राप्ति हुई। आजकल इस पहाड़ी को पार्श्वनाथ की पहाड़ी कहते हैं ।
पार्श्वनाथ ने काशी, कोसी, कोशल, पांचाल, महाराष्ट्र, मगध, अवन्ती, मालवा, अंग तथा वंग में उपदेश दिये। अनेक व्यक्ति जैन-धर्म में दीक्षित हो गये। पार्श्वनाथ ने अपने जीवन के सत्तर वर्ष उपदेश देने में व्यतीत किये।
महावीर ने पार्श्वनाथ की शिक्षाओं को संशोधित संवर्धित किया। उनके उपदेशों में ऐसा कुछ भी न था जिसे सर्वथा नवीन कहा जा सके ।
पार्श्वनाथ एक सौ वर्ष तक जीवित रहे। ८४२ ई० पू० में तीस वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग किया और ७७२ • पू० में उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई।
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ महिमान्वित हों !
FAQ
पार्श्वनाथ भगवान प्रश्नोत्तरी
प्रश्न 1: पार्श्वनाथ कौन हैं?
उत्तर: पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं, जिन्हें इंद्र का अवतार माना जाता है। वे इक्ष्वाकुवंशीय राजा विश्वसेन और रानी वामादेवी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे।
प्रश्न 2: पार्श्वनाथ का जन्म कब हुआ था?
उत्तर: पार्श्वनाथ का जन्म जैन परंपरा के अनुसार, ईसा पूर्व 872 वर्ष (लगभग) के पास पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन हुआ था।
प्रश्न 3: पार्श्वनाथ के जीवन की बड़ी बदलाव क्या थी?
उत्तर: सोलह वर्ष की आयु में राजकुमार पार्श्वनाथ ने संसारिक आसक्ति के कारण हो रहे दुखों को देखकर उन्होंने गृहस्थाश्रम को त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग में प्रवृत्त होने का निर्णय लिया।
प्रश्न 4: पार्श्वनाथ ने मुक्ति कैसे प्राप्त की?
उत्तर: पार्श्वनाथ ने कठिन तपस्या और ध्यान के माध्यम से सार्वज्ञिक चेतना और ज्ञान का प्राप्त किया। वे एक शताब्दी तक जीवित रहकर अन्त में मुक्ति की प्राप्ति हुई, जो जैन धर्म में सर्वोच्च स्थिति मानी जाती है।
प्रश्न 5: पार्श्वनाथ ने किन-किन शिक्षाएं दीं?
उत्तर: पार्श्वनाथ ने अपने उपदेशों में संसार की मिथ्यात्व को प्रकट करते हुए अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसी अनेक नैतिक गुणों का प्रचार किया।
प्रश्न 6: पार्श्वनाथ ने जीवन के कितने वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम के द्वादश व्रतों का अनुपालन किया था?
उत्तर: पार्श्वनाथ ने आठ वर्ष की आयु से ही गृहस्थाश्रम के द्वादश व्रतों का अनुपालन प्रारम्भ कर दिया था।
प्रश्न 7: पार्श्वनाथ जी की कितनी आयु में सिंहासनारूढ़ हो गए थे?
उत्तर: पार्श्वनाथ जी सोलह वर्ष की आयु में सिंहासनारूढ़ हो गए थे।
प्रश्न 8: पार्श्वनाथ जी ने अपने पिता के शब्दों के प्रति कैसा भाव दिखाया था?
उत्तर: पार्श्वनाथ जी ने अपने पिता के शब्दों से भयभीत होकर वैराग्य का निर्णय लिया था और उन्होंने जीवन में सुखों की अर्थहीनता को समझा था।
प्रश्न 9: पार्श्वनाथ जी का उपदेश किन-किन राज्यों में दिया गया था?
उत्तर: पार्श्वनाथ जी ने काशी, कोसी, कोशल, पांचाल, महाराष्ट्र, मगध, अवन्ती, मालवा, अंग और वंग राज्यों में अपने उपदेश दिए थे।
प्रश्न 10: पार्श्वनाथ जी का मुक्ति कैसे हुआ था और उनकी आयु कितनी थी तब?
उत्तर: पार्श्वनाथ जी का मुक्ति 772 ई. पू. में हुआ था और उनकी आयु 100 वर्ष थी।
प्रश्न 11: पार्श्वनाथ और महावीर के उपदेशों के बारे में कुछ और बताएं।
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेश में आत्म-विस्मृति, आत्म-संयम, ध्यान, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, तप, दान, चारित्र की महत्वपूर्णता आदि थी। महावीर ने इन उपदेशों को संशोधित करके जैन धर्म की नीति-नियम और तत्त्वों को स्पष्ट किया और अहिंसा, अपनी इन्द्रियों का नियंत्रण, संयम, आचार्य की आज्ञा का पालन आदि को बल दिया।
प्रश्न 12: पार्श्वनाथ के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ बताएं।
उत्तर: पार्श्वनाथ ने गृह-त्याग किया, वन में चले गए और पूर्णतः निर्वस्त्र हो गए। उन्होंने उपवास का अभ्यास किया और अर्हत संघ के व्रतों का अनुपालन किया। उन्होंने सिद्धों को नमन किया और निर्वाण की प्राप्ति की।
प्रश्न 13: पार्श्वनाथ का धर्म और उपदेश क्या था?
उत्तर: पार्श्वनाथ जैन धर्म के एक तीर्थंकर थे और उनके उपदेश में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, तप, दान, चारित्र की महत्वपूर्णता, वैराग्य और सामयिक धर्म की महत्वपूर्णता शामिल थी।
प्रश्न 14: पार्श्वनाथ के उपदेशों का वर्तमान समय में क्या महत्व है?
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेश आज भी आत्म-विकास, सहिष्णुता, अहिंसा, सत्य, और संयम को प्रमोट करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, विशेषकर जैन समुदाय में। इन उपदेशों से लोग अपने जीवन को उद्धारणीय दिशा में ले सकते हैं।
प्रश्न 15: पार्श्वनाथ के उपदेशों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेशों का उद्देश्य मनुष्यों को सही दिशा में जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करना था, ताकि वे आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकें और सांसारिक दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकें।
प्रश्न 16: पार्श्वनाथ जी का जीवनी और उपदेशों का मुख्य संक्षिप्त संग्रह क्या हो सकता है?
उत्तर: पार्श्वनाथ जी का जन्म 872 ई. पू. में हुआ था। उन्होंने अपने पिता के शब्दों के प्रति वैराग्य का निर्णय लिया और गृह-त्याग करके वन में चले गए। वह ध्यान और उपवास के अभ्यास में लगे रहे और आत्म-विकास की दिशा में प्रयत्नशील रहे। उन्होंने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, तप, दान, चारित्र की महत्वपूर्णता को संबोधित किया और सामयिक धर्म के महत्व को भी बताया। उनके उपदेश आज भी आत्म-उन्नति और आध्यात्मिकता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
प्रश्न 17: पार्श्वनाथ के उपदेशों में किन शिक्षाओं का विशेष महत्व है?
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेशों में अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, तप, दान, चारित्र की महत्वपूर्णता विशेष रूप से है। उन्होंने इन मूल शिक्षाओं को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर सही जीवन दिशा प्रदान की।
प्रश्न 18: पार्श्वनाथ के उपदेशों का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व क्या था?
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेश समाज में नैतिकता, शांति, सामर्थ्य, त्याग, सहिष्णुता और सद्गुणों को बढ़ावा देने के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति और मुक्ति की दिशा में जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करते थे।
प्रश्न 19: पार्श्वनाथ के उपदेशों का आज के जीवन में कैसे अनुपालन किया जा सकता है?
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेशों को आज के जीवन में अनुपालन करके हम अपने जीवन को सद्गुणों से भरपूर और सवालतमसवाल मुक्त बना सकते हैं। हमें अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, तप, दान, चारित्र की महत्वपूर्णता को समझकर उन्हें अपने जीवन में अंकित करना चाहिए।
प्रश्न 20: पार्श्वनाथ के उपदेशों के आधार पर हम अपने जीवन की कैसे दिशा तय कर सकते हैं?
उत्तर: पार्श्वनाथ के उपदेशों के आधार पर हम नैतिकता, सद्गुण, आत्म-विकास, और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अपने जीवन की योजना बना सकते हैं। हमें उनके उपदेशों को अपने दैनिक जीवन में अंकित करके सच्चे मानव बनने का प्रयास करना चाहिए।
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