Skip to main content

सन्त किसे कहते हैं ? संत शब्द की परिभाषा और अर्थ तथा लक्षण

सन्त किसे कहते हैं ? संत शब्द की परिभाषा और अर्थ तथा लक्षण



 जो ईश्वर अथवा शाश्वत सत्ता में निवास करता है; जो अहंकार, राग-द्वेष, स्वार्थपरता, मिथ्याभिमान, अहं-भाव, काम, लोभ तथा क्रोध से सर्वथा मुक्त है; जो समदृष्टि, मानसिक सन्तुलन, दया, सहिष्णुता, धर्म-परायणता तथा ब्रह्माण्डीय प्रेम से ओत-प्रोत है तथा जिसे दिव्य ज्ञान की सम्प्राप्ति हो चुकी है, उसी को सन्त कहते हैं।

                संसार को साधु-सन्त वस्तुतः एक वरदान के रूप में प्राप्त हुए हैं। वे उच्चतर दिव्य ज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति तथा अक्षय दैवी सम्पत्ति के अभिरक्षक हैं। उनके कमलवत् चरणों के समक्ष राजा-महाराजा भी नतमस्तक होते हैं। महाराजा जनक ने एक बार याज्ञवल्क्य से कहा था- "हे प्रणम्य सन्त, आपके उदात्त उपदेशों के माध्यम से मुझे उपनिषदों के प्राचीन ज्ञान की उपलब्धि हुई है। मैं इसके लिए आपका कृतज्ञ हूँ और आपके चरणों पर अपना सम्पूर्ण साम्राज्य अर्पित करता हूँ । अब मैं आपकी सेवा में आपके दास की भाँति उपस्थित रहूँगा।'

                उदारचेता साधु-सन्तों का यही स्वभाव होता है। उनके अस्तित्व मात्र से अभिप्रेरित हो कर लोग उस आनन्दमय स्थिति की सम्प्राप्ति के प्रयत्न में संलग्न हो जाते हैं, जिस स्थिति को साधु-सन्त पहले ही प्राप्त कर चुके होते हैं। यदि ये लोग हमारे बीच विद्यमान नहीं रहते, तो हमारा आध्यात्मिक ऊर्ध्वारोहण तथा निर्वाण असम्भव हो जाता है। उनकी महिमा अवर्णनीय तथा उनका ज्ञान अगाध होता है। वे समुद्र की भाँति गहन, हिमालय पर्वत की भाँति अटल, उसके तुहिन की भाँति विशुद्ध एवं सूर्य की भाँति देदीप्यमान होते हैं। उनकी कृपा तथा उनके सत्संग से ही जन्म-मरण के इस भीषण भव-सागर का सन्तरण हो जाता है। उनका सान्निध्य सर्वोत्तम शिक्षण तथा उनके प्रति हमारी श्रद्धा सर्वोच्च आनन्द है ।

सन्त किसे कहते हैं ? संत शब्द की परिभाषा और अर्थ तथा लक्षण


                     सन्त गाँव-गाँव तथा द्वार-द्वार पर जा कर दिव्य ज्ञान का प्रसाद वितरित करते हैं। वे दूसरों से अत्यल्प ग्रहण करके मानवता को सर्वोच्च शिक्षण, संस्कृति तथा ज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हैं। उनका समग्र जीवन ही अनुकरणीय होता है। वे भाषण दें या न दें, प्रवचन करें या न करें, यह महत्त्वपूर्ण बात नहीं है।

                          राजाओं के यथार्थ परामर्शदाता सन्त ही हो सकते हैं, क्योंकि वे स्वार्थपरता से मुक्त होते हैं और उनका ज्ञान सर्वोच्च होता है। लोगों की नैतिकता के विकास साधु सन्त मे ही समर्थ होते हैं। केवल वे ही अमरत्व तथा शाश्वत आनन्द की सम्प्राप्ति में हमारा आपका पथ-प्रदर्शन कर सकते हैं। स्वामी रामदास शिवाजी के तथा महर्षि वसिष्ठ राजा दशरथ के परामर्शदाता थे।

                     सन्तों के जीवन का अध्ययन आपके लिए तत्काल ही प्रेरणाप्रद सिद्ध होगा। आप उनके उपदेशों का स्मरण करते रहिए। इससे आप उच्चतर आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त होंगे और आपको दुःख-दैन्य से मुक्ति प्राप्त हो जायेगी। अतः 'लाइव्ज़ आफ सेंट्स' नामक यह पुस्तक आपकी नित्य सहचरी सिद्ध होगी। यह आपकी जेब में तथा तकिये के नीचे निश्चित रूप से विद्यमान होनी चाहिए।

                       दोष-दर्शन के अपने स्वभाव तथा अपनी कुदृष्टि के कारण सन्तों पर दोषारोपण मत कीजिए। उनके गुण-दोष के सम्बन्ध में आपको निर्णय देने का कोई अधिकार नहीं हैं । विनम्र भाव से उनकी सेवा में आप सर्वतोभावेन संलग्न रहिए, उनको अपनी वाटिका में आमन्त्रित कर अपनी शङ्काओं का समाधान कीजिए तथा उनके उपदेशामृत का पान कर उसे कार्यान्वित कीजिए। आप निश्चित रूप से कृतकृत्य होंगे।

                        प्रत्येक विद्यालय, प्रत्येक महाविद्यालय, प्रत्येक छात्रावास, प्रत्येक कारागार, प्रत्येक संस्था तथा प्रत्येक घर में मार्ग-दर्शन के लिए सन्त का होना आवश्यक है। सन्तों का अभाव नहीं है। बात केवल इतनी है कि आप स्वयं उनके पास जाना तथा उनकी सेवा करना नहीं चाहते। आपमें उच्चतर वस्तुओं की सम्प्राप्ति की इच्छा का अभाव है। आप काँच के टूटे-फूटे टुकड़ों से ही सन्तुष्ट हो गये हैं। आपमें उच्चतर दिव्य ज्ञान तथा आन्तरिक शान्ति की सम्प्राप्ति की आध्यात्मिक पिपासा का अभाव है।

                        सन्तों की कोई जाति नहीं होती। उनकी जाति की ओर ध्यान मत दीजिए। इससे आपको कोई लाभ नहीं होगा। आपके लिए उनके गुणों को आत्मसात् कर पाना असम्भव है। उच्चतर धर्म में जाति या धार्मिक रूढ़िवादिता के लिए कोई स्थान नहीं होता। मोचियों, जुलाहों तथा अन्त्यजों में भी अनेक महान् सन्त हुए हैं। ज्ञान तथा आत्मोपलब्धि पर ब्राह्मणों का एकाधिकार नहीं है। दक्षिण भारत के ब्राह्मण केवल दण्डी स्वामियों को ही भोजन देते हैं। यह भयंकर भूल है। कितनी दुःखद है यह स्थिति ! इसी कारण साधु-सन्त दक्षिण भारत का पर्यटन नहीं करते। पंजाब तथा गुजरात के लोगों में सभी सन्तों के प्रति आदर भाव है। अतः उन राज्यों में सन्तों का आना-जाना लगा रहता है तथा वहाँ के लोग उनके आध्यात्मिक प्रवचनों से लाभान्वित होते रहते हैं।

                           सन्त किसी भी देश के क्यों न हों, वे काल के सिकता-कणों पर अपने चरण-चिह्न छोड़ गये हैं जिससे सात्त्विक वृत्ति के लोग उनका अनुसरण कर शाश्वत सत्य के दर्शन कर सकें। उनके जीवन से हमें सतत प्रेरणा प्राप्त होती रही है और हम अभी तक उनकी महिमा का स्मरण करते आ रहे हैं। उनके उपदेशों का हमारे जीवन से अविच्छेद्य सम्बन्ध रहा है। वे हमें सतत अभिप्रेरित करते रहें! वे हमारा सदैव मार्ग-दर्शन करते रहें !

                       सन्तों को किसी स्थान- विशेष अथवा देश से सम्बद्ध करके नहीं देखा-परखा जा सकता। उनके प्रभाव को भौगोलिक सीमाएँ अवरुद्ध नहीं कर सकतीं। वे समस्त संसार के होते हैं। हाँ, उनके प्रादेशिक आधार के परिप्रेक्ष्य में उन पर विचार करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उनमें से प्रत्येक से उद्भूत आध्यात्मिक धाराएँ कहाँ-कहाँ से निकली तथा किस प्रकार उन सब सन्तों के सम्मिलित आध्यात्मिक प्रभाव ने पूरे देश के आध्यात्मिक पुनरुत्थान में योगदान दिया ।

                    मनुष्य स्वयं को निर्बल तथा असहाय समझ लेता है; किन्तु उसे सम्यक् मार्ग-दर्शन में अध्यवसाय द्वारा इस अशुभ प्रवृत्ति का उन्मूलन करना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए सन्तों की जीवनियाँ पथ-प्रदर्शक का काम करती हैं। ये उनके जीवन, चरित्र तथा भविष्य का निर्माण सर्वथा नवीन विधि से कर देती हैं और उनकी मानसिकता को एक नयी दिशा प्रदान कर उन्हें उनके पथ-प्रदर्शकों की आस्था तथा उनके उपदेशों के अनुरूप बना देती हैं। इतने सच्चे तथा विश्वस्त पथ-प्रदर्शक होते हैं सन्त—जो इस धरती पर आये और प्रयाण कर गये !

सन्त किसे कहते हैं ? संत शब्द की परिभाषा और अर्थ तथा लक्षण


                     यह संसार अच्छे साधु-सन्तों से परिपूरित रहे ! आप सबको उनके सत्संग तथा परामर्श से जीवन के परम लक्ष्य की सम्प्राप्ति हो ! आप सबको इन सन्तों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहे !


                   धन्‍यवाद

FAQ


क्या है सन्त शब्द का अर्थ?

क्या है सन्त शब्द का अर्थ? सन्त शब्द का अर्थ है - ईश्वर या शाश्वत सत्ता में निवास करने वाला, जो अहंकार, राग-द्वेष, स्वार्थपरता, मिथ्याभिमान, अहं-भाव, काम, लोभ और क्रोध से पूरी तरह मुक्त है। उसके पास समदृष्टि, मानसिक सन्तुलन, दया, सहिष्णुता, धर्म-परायणता और ब्रह्माण्डीय प्रेम होता है। वह दिव्य ज्ञान को प्राप्त कर चुका होता है।

सन्तों के जीवन का महत्व क्या है?

सन्तों के जीवन का महत्व इसलिए है क्योंकि उनके उपदेश और सत्संग से हम आध्यात्मिक उन्नति और सद्गुणों की प्राप्ति कर सकते हैं। उनके जीवन की जीवनी हमें प्रेरणा प्रदान करती है और उनका उपदेश हमें साधारण जीवन को उद्दीपित करते हैं। सन्तों के जीवन से हमें सच्चे साधुत्व का अनुभव होता है और हम अपने जीवन को उनके मार्ग-दर्शन के अनुसार जी सकते हैं।

सन्तों के सत्संग में क्या होता है?

सन्तों के सत्संग में उनके उपदेश और प्रवचन होते हैं। लोग उनके सवालों के उत्तर प्राप्त करते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान को समझने का प्रयास करते हैं। सत्संग में श्रद्धालु लोग आत्मानुसंधान करते हैं और आत्मा के साथ अभिप्रेरित होते हैं। सन्तों के सत्संग से लोगों को आध्यात्मिक शक्ति, शांति, आनंद, और उच्चतर स्तर के ज्ञान की प्राप्ति होती है।

सन्त की सेवा क्यों करनी चाहिए?

सन्त की सेवा करने से हम उनके सत्संग और उपदेशों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं और आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर चल सकते हैं। सन्तों की सेवा से हम उनके सत्संग में भाग लेने और उनसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं। उनकी सेवा करने से हम आत्मिक समृद्धि, शांति, और सद्गुणों का विकास कर सकते हैं। सन्तों की सेवा से हम आनंदमय जीवन जी सकते हैं और उच्चतर आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

श्री शिव रुद्राष्टकम् हिंदी अर्थ सहित || नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित

'वेदः शिवः शिवो वेदः' वेद शिव हैं और शिव वेद हैं अर्थात् शिव वेदस्वरूप हैं। यह भी कहा है कि वेद नारायणका साक्षात् स्वरूप है- 'वेदो नारायणः साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम'। इसके साथ ही वेदको परमात्मप्रभुका निःश्वास कहा गया है। इसीलिये भारतीय संस्कृतिमें वेदकी अनुपम महिमा है। जैसे ईश्वर अनादि-अपौरुषेय हैं, उसी प्रकार वेद भी सनातन जगत्में अनादि-अपौरुषेय माने जाते हैं। इसीलिये वेद-मन्त्रोंके द्वारा शिवजीका पूजन, अभिषेक, यज्ञ और जप आदि किया जाता है। नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्।विभुम् व्यापकम् ब्रह्मवेदस्वरूपम्। निजम् निर्गुणम् निर्विकल्पम् निरीहम्।चिदाकाशमाकाशवासम् भजेऽहम् ॥१॥ मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर और सभी के स्वामी शिवजी, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। स्वयं के स्वरूप में स्थित (मायारहित), गुणरहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाशरूप और आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर, मैं आपकी भक्ति करता हूँ। निराकारमोंकारमूलम् तुरीयम्।गिराज्ञानगोतीतमीशम् गिरीशम्। करालम् महाकालकालम् कृपालम्।गुणागारसंसारपारम् नतोऽहम् ॥२॥ निराकार, ओंका

गोत्र कितने होते हैं: जानिए कितने प्रकार के गोत्र होते हैं और उनके नाम

गोत्र कितने होते हैं: पूरी जानकारी गोत्र का अर्थ और महत्व गोत्र एक ऐसी परंपरा है जो हिंदू धर्म में प्रचलित है। गोत्र एक परिवार को और उसके सदस्यों को भी एक जीवंत संबंध देता है। गोत्र का अर्थ होता है 'गौतम ऋषि की संतान' या 'गौतम ऋषि के वंशज'। गोत्र के माध्यम से, एक परिवार अपने वंशजों के साथ एकता का आभास करता है और उनके बीच सम्बंध को बनाए रखता है। गोत्र कितने प्रकार के होते हैं हिंदू धर्म में कई प्रकार के गोत्र होते हैं। यहां हम आपको कुछ प्रमुख गोत्रों के नाम बता रहे हैं: भारद्वाज वशिष्ठ कश्यप अग्निवंशी गौतम भृगु कौशिक पुलस्त्य आत्रेय अंगिरस जमदग्नि विश्वामित्र गोत्रों के महत्वपूर्ण नाम यहां हम आपको कुछ महत्वपूर्ण गोत्रों के नाम बता रहे हैं: भारद्वाज गोत्र वशिष्ठ गोत्र कश्यप गोत्र अग्निवंशी गोत्र गौतम गोत्र भृगु गोत्र कौशिक गोत्र पुलस्त्य गोत्र आत्रेय गोत्र अंगिरस गोत्र जमदग्नि गोत्र विश्वामित्र गोत्र ब्राह्मण गोत्र लिस्ट यहां हम आपको कुछ ब्राह्मण गोत्रों के नाम बता रहे हैं: भारद्वाज गोत्र वशिष्ठ गोत्र कश्यप गोत्र भृगु गोत्र आत्रेय गोत्र अंगिरस गोत्र कश्यप गोत्र की कुलदेवी

ब्राह्मण धरोहर | ज्ञान, परंपरा, और समृद्धि की यात्रा

    आपकी पहचान, आपका गर्व है। और ब्राह्मण समुदाय के व्यक्तियों के लिए, इस पहचान को संजीवनी देना और आगे बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस ब्लॉग में हम ब्राह्मण वंश की धरोहर की महत्वपूर्णता और ज्ञान के मौल्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। ब्राह्मण धरोहर: ज्ञान का विरासत आपकी पहचान, आपका गौरव है। और ब्राह्मण जाति के लोगों के लिए, इस पहचान को सजीव रखना और आगे बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ब्राह्मणों को अपने धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को जानना, समझना, और आगे बढ़ाना उनके लिए एक गर्वशील कर्तव्य है। ज्ञान का साक्षरता ब्राह्मण वंश के लोगों को अपने गौत्र, प्रवर, और वेदशास्त्र के बारे में जानकर रहना चाहिए। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को मजबूत बनाए रखेगा, बल्कि उन्हें उनके समाज में सहायक बनाए रखने में भी मदद करेगा। पीढ़ी को जानकारी देना ब्राह्मण परंपरा को आगे बढ़ाते समय, अपनी पीढ़ियों को इस धरोहर की महत्वपूर्णता का संबोधन करना चाहिए। उन्हें अपने गोत्र, प्रवर, और वेदशास्त्र के बारे में बताकर उनकी आत्मा को संजीवनी देना होगा। समृद्धि का आधार ब्राह्मणों का ज्ञान और सांस्कृतिक समृद्धि में एक महत्वपूर्ण