|| बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् |||| अथ अवतारकथनाध्यायः ||
परिचय:
सर्वेषु चैव जीवेषु परमात्मा विराजते ।
सर्व हि तदिदं ब्रह्मन् ! स्थितं हि परमात्मनि ।।
सर्वेषु चैव जीवेषु स्थितं ह्यंशद्वयं क्वचित् ।
जीवांशो ह्यधिकस्तद्वत् परमात्मांशकः किल ।।
सूर्यादयो ग्रहाः सर्वे ब्रह्मकामद्विपादयः ।
एते चान्ये च बहवः परमात्मांशकाधिकाः ।।
शक्तयश्च तथैतेषामधिकांशाः श्रियादयः ।
स्वस्वशक्तिषु चान्यासु ज्ञेया जीवांशकाधिकाः ।।
हे विप्र मैत्रेय ! सब जीवों में परमात्मा विद्यमान है। समस्त चराचर जगत् भी परमात्मा में ही स्थित है। सब जीवों में से किसी किसी में जीवांश अर्थात् मायोपहित चैतन्य अथवा अज्ञानांश अधिक होता है। वे सब साधारण पुरुष हैं तथा किन्हीं में परमात्मांश अर्थात् शुद्ध, बुद्ध, सत्त्व, स्वयं प्रकाश अंश की अधिकता होती है।
सूर्य आदि ग्रहों में, ब्रह्मा व शिवादि में भी परमात्मांश अधिक रहता है। इसी प्रकार से और भी बहुत से परमात्मांश प्रधान अवतार हुए हैं। इसी तरह इनकी शक्तियाँ भी तत्तत् श्री आदि के अधिकांश से युक्त होती हैं। इसके अतिरिक्त देवों व मानुषादि जीवों में जीवांश अधिक होता है।
आशय यह है कि ज्ञान या परा विद्या की अधिकता वाले प्राणी अवतार श्रेणी में एवं अविद्या या दार्शनिक अज्ञान से अधिकतया युक्त प्राणी साधारण श्रेणी में आते हैं। पुनश्च 'सर्व विष्णुमयं जगत्' कहने से सभी में परमात्मा का निवास रहने से सभी अवतार न होकर ईश्वरीय गुणों की युक्तता के आधार पर प्राधान्याप्राधान्येन अवतारादि निर्देश करना योग्य है।
रामकृष्णादयो ये ये ह्यवतारा रमापतेः ।
केपि जीवांशसंयुक्ताः किं वा ब्रूहि मुनीश्वर !।।
मैत्रेय ने पूछा-भगवन् ! मुनिराज ! राम, कृष्ण आदि का शास्त्रों में विष्णु के अवतार रूप में वर्णन हुआ है, क्या आप उन्हें भी जीवांश युक्त समझते हैं ?
रामः कृष्णश्च भो विप्र ! नृसिंहः सूकरस्तथा ।
एते पूर्णावताराश्च यन्ये जीवांशकान्विताः ।।
पराशर बोले-राम, कृष्ण, वराह व नृसिंह रूप में पूर्णावतार अर्थात् सम्पूर्ण परमात्मा से युक्त हैं, जबकि इनके अतिरिक्त शेष प्रसिद्ध अवतारों में जीवांश भी विद्यमान हैं।
अवताराण्यनेकानि यजस्य परमात्मनः ।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दनः ।।
दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलवृद्धये ।
धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात् ।।
यद्यपि अजन्मा (अज) भगवान् वासुदेव के अनेक अवतार हैं, लेकिन सभी प्राणियों को कर्मफल देने वाले ग्रहरूप अवतार मुख्य हैं। दैत्यों के बल का नाश करने के लिए, देवों के बल को बढ़ाने के लिए, धर्म संस्थापनार्थ ग्रहों से रामादि मुख्य अवतार हुए हैं।
रामठवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः ।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुधः सोमसुतस्य च ।।
वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च ।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः । ।
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेपि खेटजाः ।
परात्मांशोऽधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ।।
सूर्य से रामावतार, चन्द्रमा से कृष्णावतार, मंगल से नरसिंहावतार, बुध से बुद्धावतार, गुरु से वामनावतार, शुक्र से परशुरामावतार, शनि से कूर्मावतार, राहु से वराहावतार, केतु से मत्स्यवातार हुए हैं। अन्य अवतार भी ग्रहों से ही हुए हैं तथा उनमें परमात्मांश की अधिकता है । परमात्मांश के आधिक्य के कारण ही इनका नाम 'खेचर' आकाशचारी मुख्य ग्रहों के अतिरिक्त अन्य नक्षत्र, तारे उपग्रह आदि पड़ा है ।
जीवांशो ह्यधिको येषु जीवास्ते वै प्रकीर्तिताः ।
सूर्यादिभ्यो ग्रहेभ्यश्च परमात्मांशनिःसृताः ।।
रामकृष्णादयः सर्वे ह्यवतारा भवन्ति वै ।
तत्रैव ते विलीयन्ते पुनः कार्योत्तरे सदा ।।
जीवांशनिःसृतास्तेषां तेभ्यो जाता नरादयः ।
तेऽपि तत्रैव लीयन्ते ऽव्यक्ते समयन्ति हि ।।
इदं ते कथितं विप्र ! सर्व यस्मिन् भवेदिति ।
भूतान्यपि भविष्यन्ति तत्तज्जानन्ति तद्विदः । ।
विना तज्ज्यौतिषं नान्योज्ञातुं शक्नोति कर्हिचित् ।
तस्मादवश्यमध्येयं ब्राह्मणैश्च विशेषतः ।।
यो नरः शास्त्रमज्ञात्वा ज्यौतिषं खलु निन्दति ।
रौरवं नरकं भुक्त्वा चान्धत्वं चान्यजन्मनि ।।
FAQ📌
परमात्मा कैसे सभी जीवों में है?
सभी जीवों में परमात्मा का अंश होता है, जिससे वे सभी परमात्मा के साथ जुड़े होते हैं।
कैसे देवताओं और मानवों में जीवांश भिन्न हो सकता है?
देवताओं और मानवों में जीवांश की अधिकता भिन्न-भिन्न होती है, जिससे उनकी शक्तियाँ भी विभिन्न होती हैं।
क्या ज्ञान या परा विद्या की अधिकता वाले प्राणी अवतार श्रेणी में आते हैं?
हाँ, ज्ञान या परा विद्या की अधिकता वाले प्राणी अवतार श्रेणी में आते हैं, जो ईश्वरीय गुणों से युक्त होते हैं।
क्या सभी में परमात्मा का निवास है?
हाँ, 'सर्व विष्णुमयं जगत्' के अनुसार सभी में परमात्मा का निवास है, लेकिन इसका अभिप्रेत अर्थ है कि सभी में ईश्वरीय गुण होते हैं।
अजन्मा भगवान् कौन हैं?
अजन्मा भगवान् वासुदेव के अनेक अवतार हैं, जो सभी प्राणियों को कर्मफल देने वाले ग्रहरूप अवतार माने जाते हैं।
कैसे ये अवतार दैत्यों के बल का नाश और देवों के बल को बढ़ाने के लिए आते हैं?
ये अवतार दैत्यों के बल का नाश करने और देवों के बल को बढ़ाने के लिए उत्पन्न होते हैं, जबकि उनका प्रमुख उद्देश्य धर्म संस्थापना है।
कौन-कौन से ग्रहरूप अवतार हैं और उनके क्या कार्य हैं?
इन अवतारों में रामादि मुख्य हैं, जो दैत्यों के बल का नाश करने और धर्म संस्थापना के लिए उत्पन्न होते हैं।
क्या इन अवतारों का सम्बंध पौराणिक कथाओं से है?
हाँ, इन अवतारों का सम्बंध पौराणिक कथाओं से है, जो भगवान् वासुदेव के लीलाओं और उनके धर्मसंस्थापना के प्रदर्शनों के माध्यम से बताए जाते हैं।
सूर्य से रामावतार, चन्द्रमा से कृष्णावतार - इसका क्या अर्थ है?
यह अर्थपूर्ण संबंध है कि सूर्य से रामावतार और चन्द्रमा से कृष्णावतार जैसे अवतार हुए हैं, जिनमें भगवान का परमात्मांश होता है।
कौन-कौन से ग्रह और उनके साथ संबंधित अवतार हैं?
सूर्य से राम, चन्द्रमा से कृष्ण, मंगल से नरसिंह, बुध से बुद्ध, गुरु से वामन, शुक्र से परशुराम, शनि से कूर्म, राहु से वराह, केतु से मत्स्य - इन ग्रहों से संबंधित अवतार हैं।
अन्य अवतारों में क्या विशेषता है?
अवतारों में परमात्मांश की अधिकता है, जिससे इन्हें 'खेचर' आकाशचारी और अन्य नक्षत्र, तारे उपग्रह आदि से भिन्न बनाती है।
ग्रहों से संबंधित अवतारों का उद्देश्य क्या है?
अवतारों का उद्देश्य दैत्यों के बल का नाश, देवों के बल को बढ़ाना, और धर्म स्थापना करना है, जो ग्रहों के माध्यम से होता है।
'जीव' कौन कहलाते हैं और उनमें कौन-कौन से गुण होते हैं?
'जीव' वे प्राणी होते हैं जिनमें जीवांश की अधिकता होती है। उनमें परमात्मभूत गुण होते हैं।
सूर्यादि ग्रहों से जुड़े अवतारों में कैसे हुई है रामकृष्णादि की उत्पत्ति?
सूर्यादि ग्रहों के अधिकांश से रामकृष्णादि अवतार जिनमें जीवांश की अधिकता है, उनकी उत्पत्ति हुई है।
मनुष्यादि प्राणियों की उत्पत्ति कैसे हुई है और इनमें कौन-कौन से गुण होते हैं?
ग्रहों के अल्पांश से मनुष्यादि प्राणियों की उत्पत्ति हुई है, जिनमें परमात्मभूत गुण होते हैं।
प्रलय काल में क्या होता है और उस समय कैसे होता है सृष्टि का अंत?
प्रलय काल में समस्त ग्रहादि अव्यक्त में लीन होते हैं, और सृष्टि का अंत होता है। इस समय सभी जीव ग्रहेन्द्रों में समा जाते हैं।
अव्यक्त से उत्पन्न सृष्टि या सर्ग का रहस्य क्या है?
अव्यक्त से उत्पन्न सृष्टि या सर्ग का रहस्य से भूत और भविष्य का ज्ञान प्राप्त होता है, जिसे जानना सुकर है।
परमात्मभूत अवतार कौन होते हैं और उन्हें प्रलय के बारे में कैसी जानकारी होती है?
परमात्मभूत अवतार स्वयं में प्रलय के बारे में जानकार होते हैं और वे सीधे प्रलय की प्रक्रिया को जानते हैं।
शेष जीवांश प्रधान मनुष्यादि किस प्रकार से जान सकते हैं प्रलय के बारे में?
शेष जीवांश प्रधान मनुष्यादि भूत या भविष्यत् के परिणाम को ज्योतिषशास्त्र की सहायता के बिना नहीं जान सकते, जिससे उन्हें प्रलय के बारे में जानकारी मिलती है।
ज्योतिषशास्त्र कैसे संसार के परिणामों को जानने में सहायक होता है?
ज्योतिषशास्त्र संसार के परिणामों को जानने में माध्यम होता है, जिससे भूत और भविष्य की जानकारी मिलती है।
क्या इससे भूत और भविष्य का ज्ञान सुकर है?
हाँ, ज्योतिषशास्त्र की सहायता से भूत और भविष्य का ज्ञान सुकर है, जिससे व्यक्ति को अपने कर्मों के परिणामों का अवगत होता है।
ज्योतिषशास्त्र का विधिवत् अध्ययन क्यों चाहिए?
ज्योतिषशास्त्र का विधिवत् अध्ययन करना आवश्यक है ताकि सभी, विशेषतया ब्राह्मण, अपने जीवन की दिशा को समझ सकें और सही निर्णय ले सकें।
ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन करने का क्या फायदा है?
ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन करने से व्यक्ति अपने भविष्य और कर्मों के परिणामों को समझ सकता है, जिससे उसे सही दिशा में चलने में मदद मिलती है।
शास्त्र को न जानने और न पढ़ने पर क्या होता है?
जो व्यक्ति शास्त्र को बिना जाने और पढ़े इसकी निन्दा करता है, उसे रोग और नरक का भोग होता है, और वह पुनः जन्म में अन्धा होता है।
इससे कैसे बचा जा सकता है?
इससे बचने के लिए सभी को ज्योतिषशास्त्र का विधिवत् अध्ययन करना चाहिए ताकि सही मार्गदर्शन मिल सके और व्यक्ति सही दिशा में बढ़ सके।
ग्रहवतार में राम, कृष्ण, नृसिंह और वराह कौन-कौन से हैं?
राम, कृष्ण, नृसिंह और वराह सम्पूर्ण अवतारों में शामिल हैं, और इनका सम्बन्ध सूर्य, चन्द्रमा, मंगल और राहु से जुड़कर फलित में विशेषतया अस्तित्व है।
अव्यक्त या 'विष्णु' कौन हैं और उनका क्या संबंध है?
अव्यक्त या 'विष्णु' स्वयं 12 आदित्यों में से एक हैं और इनका संबंध देवताओं और राक्षसों के साथ है। वे प्रकाश रूप होते हैं और दैत्य अंधकार रूप होते हैं।
ग्रहेन्द्र से संसार के परिणाम कैसे होते हैं?
अव्यक्त या सूर्य रूप ग्रहेन्द्र से सारे ग्रह प्रकाशित होते हैं, जिससे समस्त संसार मुख्यतया इन 9 ग्रहों के अधीन होता है।
ग्रहों का अधीन होना किस प्रकार का अर्थ है?
ग्रहों का अधीन होना यह दिखाता है कि समस्त संसार इन ग्रहों के प्रभाव में है और इनके अनुसार कर्मफल प्राप्त होता है।
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