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मुक्ताबाई


निवृत्तिनाथ, ज्ञानदेव, सोपान तथा मुक्ताबाई—ये विठ्ठल पन्त तथा रुक्माबाई की चार सन्तानें थी। ये लोग के निकट आलन्दी में रहते थे। निवृत्ति, ज्ञानदेव, सोपान तथा मुक्ताबाई को क्रमशः भगवान् शिव, श्रीकृष्ण, ब्रह्मा तथा सरस्वती या आदि शक्ति का अवतार माना जाता है।

मुक्ताबाई कौन थी?

विट्ठल पन्त बाल्यावस्था से ही सत्यान्वेषी थे। गृह-त्याग कर वह काशी चले गये जहाँ उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया। जब विट्ठल पन्त के गुरु को यह ज्ञात हुआ कि उनका नव-दीक्षित शिष्य विवाहित है और उसकी युवा पत्नी भी जीवित है, तब उन्होंने विट्ठल पन्त को घर जा कर गृहस्थ जीवन व्यतीत करने का आदेश दिया। विट्ठल पन्त घर लौट कर अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। यहाँ उनके तीन पुत्रों तथा एक पुत्री ने जन्म-ग्रहण किया। विट्ठल पन्त तथा उनके परिवार के लोगों के प्रति गाँव के लोगों का व्यवहार अत्यन्त कटु था। इस कष्टप्रद तथा अपमानित जीवन के कारण भग्न-हृदय दम्पति का असमय ही देहान्त हो गया और इस प्रकार अल्पायु में ही उनकी सन्तान अनाथ हो गयी।

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निवृत्तिनाथ ने अपने अल्प वयस्क भाइयों तथा अपनी बहन का पालन-पोषण किया। गहनीनाथ निवृत्तिनाथ के, निवृत्तिनाथ ज्ञानदेव के तथा ज्ञानदेव सोपान एवं मुक्ताबाई के गुरु थे। ये सभी पण्ढरपुर के विट्ठल के भक्त, पूतात्मा तथा धर्मनिष्ठ थे ।


ज्येष्ठतम पुत्र निवृत्ति का अभी यज्ञोपवीत-संस्कार होना था। वह संन्यासी के पुत्र थे; अतः ब्राह्मणों ने उनके यज्ञोपवीत संस्कार का अनुष्ठान करना अस्वीकार कर दिया। ज्ञानदेव ने एक भैंसे के शरीर पर अपना हाथ रखा और वह भैसा उनके हाथों के दिव्य स्पर्श के कारण वेद-मन्त्रों का पाठ करने लगा। इस घटना से ब्राह्मणों के भ्रम का निवारण हो गया और उनकी आँखें खुल गयीं। उन्होंने उनको यह दिखा दिया कि यथार्थ ब्राह्मणत्व किसी पूर्व-निर्धारित कर्म-काण्डीय व्यवस्था या सिद्धान्त पर आधारित न हो कर आन्तरिक पवित्रता तथा सच्चरित्रता पर आधारित है।


एक बार चांगदेव एक शेर पर बैठ कर उन प्रख्यात भाइयों को देखने गये। ज्ञानदेव भी उनसे कम नहीं थे। वह योगी थे। अपने भाई-बहन के साथ वह जिस घर में बैठे थे, वह घर ही उन चारों को लिये हुए चांगदेव के स्वागत के लिए चल पड़ा । अव चांगदेव को लज्जित हो कर उनके समक्ष अवनत-शिर होना पड़ा। उन्होंने ज्ञानदेव की महत्ता को स्वीकार कर लिया। ज्ञानदेव ने इक्कीस वर्ष की आयु में सजीव समाधि ली । एक गुफा में प्रविष्ट हो कर उन्होंने प्राण को ब्रह्मरन्ध में पहुँचा दिया । 'ज्ञानेश्वरी' नामक उनका गीता-भाष्य एक कालजयी भाष्य है ।


मुक्ताबाई आजीवन कुमारी रही। वह एक सिद्ध महिला थी। वह चांगदेव की गुरु थी । एक दिन मुक्ताबाई अपने भाइयों के साथ आश्रम में बैठी हुई थी। चांगदेव कहीं से उधर ही आ रहे थे। मुक्ताबाई विधिवत् वस्त्र धारण किये हुए थी; किन्तु चांगदेव को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो वह बिलकुल नग्नावस्था में हो। वह घूम कर दूसरी ओर चल पड़े। मुक्ताबाई ने उनसे कहा कि अभी वह सिद्धावस्था को नहीं प्राप्त हो सके हैं; क्योंकि अभी उनमें लिंग-भेद तथा लज्जा-भाव विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त वह प्रत्येक भूत में ईश्वर-दर्शन में भी अक्षम हैं। इस प्रकार मुक्ताबाई से चांगदेव को एक अमूल्य शिक्षा प्राप्त हुई। उन्होंने गहन साधना कर इस दुर्बलता से मुक्ति प्राप्त कर ली ।


एक बार पण्ढरपुर के मन्दिर में अत्यधिक संख्या में भक्त एकत्र हुए। चांगदेव, गोरा कुम्हार, रोहीदास, नामदेव, चोखामेला तथा सत्ता के अतिरिक्त वहाँ अन्य कई भक्त आये हुए थे। मुक्ताबाई ने नामदेव का ज्ञानवर्धन करना चाहा। उसने कुम्भकार गो कुम्हार से उन सभी सन्तों का परीक्षण करने को कहा। कुम्भकार को पात्र के स्पर्श से उसकी परिपक्वता का ज्ञान हो जाता है। गोरा कुम्हार ने सभी सन्तों के शिर का स्पर्श किया। जब उन्होंने नामदेव के शिर का स्पर्श किया, तब नामदेव चिल्ला उठे। गोरा कुम्हार ने तत्क्षण कह दिया – “यह पात्र अभी पूर्णतः परिपक्व नहीं हो पाया है।"


नामदेव दौड़ कर कृष्ण के पास गये और उस सभा में जो कुछ हुआ था, उसका विवरण उन्होंने उनके समक्ष प्रस्तुत कर दिया। श्रीकृष्ण ने उनसे कहा-“हाँ, नामदेव, अभी तुम कच्चे अर्थात् अपरिपक्व हो। तुम्हें आत्यन्तिक बोध की सम्प्राप्ति अभी नहीं हो सकी है। तुम खेचर स्वामी के पास जा कर उनसे दीक्षा ग्रहण करो ।”


मुक्ताबाई ने आठ वर्षों की अवधि में सहस्रों लोगों को प्रबुद्ध किया और इसके पश्चात् वह शाश्वत आनन्द के परम धाम में चली गयी।


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FAQ


प्रश्न 1: कौन थे विठ्ठल पन्त और रुक्माबाई की चार सन्तानें?

उत्तर: विठ्ठल पन्त और रुक्माबाई की चार सन्तानें थे - निवृत्तिनाथ, ज्ञानदेव, सोपान, और मुक्ताबाई।

प्रश्न 2: इन चार सन्तानों को किस देवता या देवी का अवतार माना जाता था?

उत्तर: निवृत्तिनाथ को भगवान शिव, ज्ञानदेव को श्रीकृष्ण, सोपान को ब्रह्मा, और मुक्ताबाई को सरस्वती या आदि शक्ति का अवतार माना जाता था।

प्रश्न 3: विट्ठल पन्त की जीवनी में कैसे बदलाव हुआ था?

उत्तर: विट्ठल पन्त बाल्यावस्था से ही सत्यान्वेषी थे। उन्होंने संन्यास लेने का निश्चय किया था, लेकिन उनके गुरु ने उन्हें घर जाकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करने का आदेश दिया। इसके बाद उन्होंने पत्नी के साथ रहकर तीन पुत्रों और एक पुत्री को जन्म दिया।

प्रश्न 4: निवृत्तिनाथ ने किसका पालन-पोषण किया और किसके गुरु थे?

उत्तर: निवृत्तिनाथ ने अपने अल्प वयस्क भाइयों और अपनी बहन का पालन-पोषण किया था। उनके गुरु गहनीनाथ और उसके गुरु ज्ञानदेव थे।

प्रश्न 5: ज्ञानदेव का किस घटना से ब्राह्मणों के भ्रम का निवारण हुआ था?

उत्तर: ज्ञानदेव ने एक भैंसे के शरीर पर अपना हाथ रखा और वह भैंसा उनके हाथों के दिव्य स्पर्श के कारण वेद-मन्त्रों का पाठ करने लगा। इस घटना से ब्राह्मणों के भ्रम का निवारण हो गया और उनकी आँखें खुल गईं।

प्रश्न 6: मुक्ताबाई की विशेषता क्या थी और उन्होंने किस सन्त से ज्ञानवर्धन किया?

उत्तर: मुक्ताबाई आजीवन कुमारी रही और वह एक सिद्ध महिला थी। उन्होंने नामदेव से ज्ञानवर्धन किया था।

प्रश्न 7: कौन-कौन से सन्त एकत्र होकर मंदिर में भक्तों को प्रबुद्ध करने आए थे?

उत्तर: चांगदेव, गोरा कुम्हार, रोहीदास, नामदेव, चोखामेला तथा सत्ता इनमें से कुछ सन्त एकत्र होकर मंदिर में भक्तों को प्रबुद्ध करने आए थे।

प्रश्न 8: नामदेव ने कैसे ज्ञानवर्धन प्राप्त किया था?

उत्तर: नामदेव को गोरा कुम्हार ने परीक्षण करते हुए ज्ञानवर्धन प्रदान किया था, जिसमें उनका सिर स्पर्श किया गया था। इससे उन्हें आत्यन्तिक बोध की सम्प्राप्ति हुई और उन्हें खेचर स्वामी के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करने का सुझाव दिया गया था।

प्रश्न 9: मुक्ताबाई ने जीवन में क्या-क्या कार्य किए और आखिरकार कहाँ चली गई?

उत्तर: मुक्ताबाई ने आठ वर्षों की अवधि में सहस्रों लोगों को प्रबुद्ध किया और अपने सम्पूर्ण जीवन में सिद्ध धाम में चली गईं।

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