गुरु रामदास सोढ़ी खत्री थे । उनका जन्म १५३४ ई० में लाहौर नगर की चुनी मण्डी में हुआ था। जब उनकी आयु मात्र सात वर्ष थी, तब उनके पिता का देहान्त हो गया और वह गोविन्दवाल चले गये। वहाँ जा कर वह उबली हुई दालें तथा अन्य खाद्य पदार्थ बेच कर अपना जीविकोपार्जन करने लगे। एक दिन गुरु अमरदास अपनी पुत्री बीबी भेनी के लिए एक उपयुक्त वर की खोज में किसी ब्राह्मण को भेजने जा रहे थे। उस समय रामदास पूर्ववत् दालें बेचते हुए सड़क पर चले जा रहे थे । अमरदास की पत्नी ने उस ब्राह्मण से कहा- “मैं चाहती हूँ कि मेरा दामाद रामदास-जैसा हो । "
गुरु अमरदास ने कहा— “ऐसे ही आदर्श युवक को हमारा दामाद होना चाहिए। इसके पश्चात् उन्होंने किसी को भेज कर रामदास को बुलवाया और उनसे अपनी पुत्री भेनी का विवाह कर दिया। गोविन्दवाल में नव-दम्पति के रहने के लिए एक पृथक् घर की व्यवस्था कर दी गयी। पिरथीचन्द, महादेव तथा अर्जुन—रामदास के तीन पुत्र थे | अमरदास ने रामदास को इस उच्चासन के लिए उपयुक्त समझ कर उनको गद्दी पर बैठा दिया।
गुरु रामदास प्रत्येक दृष्टि से एक सुयोग्य व्यक्ति थे। उनकी प्रकृति शान्त एवं वाग्मिता तथा ऊर्जस्विता विस्मयजनक थी। उनकी रुचि साहित्य में भी थी। वह कविताएँ लिखते थे और सुन्दर तथा आकर्षक स्तोत्रों के माध्यम से अपने सिद्धान्तों के प्रतिपादन में निष्णात थे। उनके कुछ स्तोत्रों को 'आदि ग्रन्थ' में भी समाविष्ट किया गया है। उनको सर्वाधिक सम्माननीय गुरु समझा जाता है।
गुरु नानक के ज्येष्ठ पुत्र श्रीचन्द ने एक नये सम्प्रदाय की स्थापना कर ली थी। इसे उदासी-सम्प्रदाय कहते हैं। जो लोग संसार के प्रति विरक्त होते हैं, उन्हें उदासी कहा जाता है। एक बार श्रीचन्द ने गुरु रामदास के पास जा कर उनसे कहा—“कितनी लम्बी दाढ़ी बढ़ा ली है आपने !” रामदास ने कहा- "मैंने यह दाढ़ी इसलिए बढ़ा ली है कि मैं इससे आपका चरण-प्रक्षालन कर सकूँ।" इतना कहते ही रामदास ने सचमुच ही अपनी दाढ़ी से उनके चरण प्रक्षालित कर दिये | उनकी इस आत्यन्तिक विनम्रता के कारण श्रीचन्द लज्जित हो उठे और उनको यह स्वीकार करना पड़ा की अमरदास सिक्ख समुदाय के शीर्षस्थ पद के वास्तविक अधिकारी हैं।
रामदास ने सिक्खों को विवाह तथा सन्तानोपत्ति के लिए प्रोत्साहित किया। वह तप के पक्षपाती नहीं थे
एक बार लाहौर में रामदास सम्राट् अकबर से मिले। अकबर को यह ज्ञात हो गया कि रामदास निर्धनों तथा पीड़ितों की सेवा करते हैं। उसने उनके नाम एक भूखण्ड लिख दिया। रामदास ने वहाँ एक पुराने तालाब का परिष्कार कर उसका नाम अमृत सागर रख दिया। उन्होंने तालाब के बीच में एक मन्दिर का निर्माण किया जिसके चतुर्दिक् अन्य छोट-छोटे मन्दिरों का भी निर्माण किया गया। गुरु के अनुयायियों ने वहाँ अनेक कुटीर भी बनवा दिये। इस नव-निर्मित नगर को 'गुरु का चक' नाम दिया गया । तत्पश्चात् इसे अमृतसर कहा जाने लगा और यही नाम आज भी प्रचलित है।
रामदास के हृदय में निर्धनों के प्रति अपार सहानुभूति थी । वह कृषकों की अधिकाधिक सहायता करते थे । अतः लोग उन्हें 'सच्चा बादशाह' कहते थे ।
गुरु रामदास ने सिक्खों के हृदय को बन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत किया। उन्होंने गुरु नानक के मत की समुन्नति के लिए अत्यधिक प्रयास किये। उन्होंने अमृतसर नगर की स्थापना के माध्यम से एक राष्ट्र के रूप में सिक्खों की भावी महानता का शिलान्यास किया। अमृतसर का स्वर्ण-मन्दिर उपासना का एक सार्वजनिक स्थान बन गया। सिक्खों ने एकताबद्ध हो कर बन्धुत्व-प्रेम से अनुप्राणित होने की शिक्षा ग्रहण की जिससे यथार्थ देश-भक्ति के सिद्धान्तों पर आधारित एक राष्ट्र-कुल के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त हो सका।
पिरथी सांसारिकता में लिप्त, कुटिल-हृदय तथा एक स्वार्थी व्यक्ति था, अतः रामदास ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अर्जुन सिंह को नामाङ्कित कर दिया। १५८१ ई. में गोविन्दवाल में सैंतालिस वर्ष की आयु में रामदास का देहान्त हो गया। वह गुरु का गद्दी पर लगभग सात वर्षों तक आसीन रहे। रामदास ने अर्जुन को अमृतसर में दो तालाबों के निर्माण का स्पष्ट आदेश दिया।
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FAQ
प्रश्न: गुरु रामदास जी का उपनाम क्या था?
उत्तर: गुरु रामदास जी का उपनाम 'जेठा' था।
प्रश्न: गुरु रामदास जी के पिता का क्या नाम था और वह किस काम में लगे रहते थे?
उत्तर: गुरु रामदास जी के पिता का नाम गोविन्दवाल था और वह उबली हुई दालें तथा अन्य खाद्य पदार्थों का व्यापार करते थे।
प्रश्न: गुरु अमरदास जी ने गुरु रामदास जी के विवाह के लिए किसे चुना और क्यों?
उत्तर: गुरु अमरदास जी ने अपनी पुत्री बीबी भेनी के लिए गुरु रामदास जी को चुना, क्योंकि उन्होंने उनको आदर्श युवक माना और विवाह के लिए उपयुक्त समझा।
प्रश्न: गुरु रामदास जी ने सिख समुदाय के लिए क्या-क्या महत्वपूर्ण कार्य किए?
उत्तर: गुरु रामदास जी ने सिख समुदाय को विवाह और सन्तानोपत्ति के लिए प्रोत्साहित किया, अमृतसर नगर की स्थापना की, तालाबों और मन्दिरों का निर्माण करवाया और सिख धर्म की प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास किए।
प्रश्न: गुरु रामदास जी को 'सच्चा बादशाह' क्यों कहा जाता था?
उत्तर: गुरु रामदास जी को 'सच्चा बादशाह' कहा जाता था क्योंकि उन्होंने अपनी निर्धनों की सेवा की, लोगों की सहायता की और सिख समुदाय की देखभाल की।
प्रश्न: गुरु रामदास जी ने अकबर से कैसे मिलकर उनकी सेवा की?
उत्तर: गुरु रामदास जी ने अकबर से मिलकर उनकी सेवा की और अकबर ने उन्हें भूखण्ड और तालाब के परिष्कार करने का आदेश दिया, जिन्होंने इसे पूरा किया।
प्रश्न: गुरु रामदास जी का क्या संदेश था और उनका क्या महत्व था?
उत्तर: गुरु रामदास जी ने सिख समुदाय को एकताबद्ध होने की भावना और बन्धुत्व की महत्वपूर्णता सिखाई और अमृतसर नगर की स्थापना करके सिख धर्म की प्रचार-प्रसार की प्रेरणा दी।
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