गुरु हर राय का जन्म १६३० ई. में हुआ। गुरु हरगोविन्द के पुत्र गुरुदित्ता उनके पिता थे और उनकी माता का नाम निहाल कौर था। वह एक शान्त-सन्तुष्ट व्यक्ति थे । युद्ध में उनकी रुचि नहीं थी। वह शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते थे।
गुरु हरगोविन्द के पुत्र गुरुदित्ता की अकाल मृत्यु हुई थी। मृत्यु के समय उसकी आयु चौबीस वर्ष थी। शिकार खेलते समय उसके एक सिक्ख सहचर ने हिरण समझ कर एक गाय की हत्या कर दी। चरवाहों ने उस हत्यारे को पकड़ लिया और कहा कि जब तक गुरुदित्ता इस गाय को पुनर्जीवित नहीं कर देता, तब तक वे उसे नहीं छोड़ेंगे। गुरुदित्ता में जीवन-दान की शक्ति तो थी; किन्तु वह इसका प्रयोग नहीं करना चाहता था, क्योंकि उसके पिता हरगोविन्द चमत्कार-प्रदर्शन के विरोधी थे । वस्तुतः वह धर्म-संकट में पड़ गया। किन्तु अपने सहचर को मुक्त करवाने के लिए अपना डण्डा उस मृत गाय के शिर पर रख कर उसने कहा- “उठो और घास खाओ।" इन शब्दों को सुनते ही गाय खड़ी हो कर अपने यूथ में मिल गयी। इस चमत्कार की बात सुन कर गुरु हरगोविन्द बहुत रुष्ट हुए। उन्होंने कहा—“यह बात मेरे लिए हर्षवर्धक नहीं है कि तुम स्वयं को ईश्वर के समकक्ष समझ कर मृतकों को जीवन-दान देते रहो।” उनके ये शब्द गुरुदित्ता के लिए मर्मभेदी सिद्ध हुए। वह अपने पिता से विनयपूर्वक विदा ले कर बुद्धन शाह की कब्र की ओर चल पड़ा। उस कब्र के पास उसने घास-फूस बिछायी, अपना डण्डा धरती पर फेंका और उस घास-फूस पर लेट कर प्राण त्याग कर दिया। गुरु को उसकी मृत्यु से कोई दुःख नहीं हुआ।
सिंहासन पर अधिकार के लिए संघर्ष में गुरु हर राय ने दाराशिकोह की सहायता की।
राजकुमार औरङ्गजेब ने अपने अग्रज दाराशिकोह की हत्या के लिए उसके भोजन में शेर की मूँछ के बाल मिला दिये। इसके फल-स्वरूप दाराशिकोह रोग-ग्रस्त हो गया और धीरे-धीरे उसकी दशा शोचनीय होती गयी। उसके रोग के निदान के पश्चात् सर्वश्रेष्ठ हकीम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बीस औंस की हरीतकी तथा एक माशा के लौंग से ही इस रोग का निराकरण सम्भव है; किन्तु इतनी भारी हरीतकी तथा लौंग का मिलना असम्भव था। इस स्थिति में शाहजहाँ को परामर्श दिया गया कि वह इसके लिए गुरु हरराय की सहायता की याचना करे। पहले तो इसके लिए शाहजहाँ तैयार नहीं हुआ; किन्तु बाद में उसने गुरु के पास एक पत्र भेज कर उसकी सहायता की याचना की। गुरु अपने भण्डार गृह से अपेक्षित भार की हरीतकी तथा लौंग निकाल लाये। उनमें उन्होंने मुक्ता तथा कुछ और औषधियाँ मिला कर सम्राट् के दूत द्वारा दिल्ली भेजवा दिया। इसके सेवन से दारा के पेट से शेर की मूँछ के बाल बाहर आ गये और वह स्वस्थ हो गया।
तत्पश्चात् औरङ्गजेब ने उसे गिरफ्तार कर उसकी हत्या करवा दी।
हर राय ने औरङ्गजेब से शान्तिपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के प्रयास किये। औरङ्गजेब ने हर राय को शाही दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया; किन्तु मुगल सम्राट् के विश्वासघात के भय से उन्होंने अपने स्थान पर अपने वरिष्ठ पुत्र राम राय को दिल्ली भेज दिया। औरङ्गजेब ने राम राय को अपने दरबार में बहुत दिनों तक रखा और उसके प्रति सम्मानजनक व्यवहार किया। राम राय के पिता ने उसे कठोर आदेश दिया था कि वह अपने मत के प्रति निष्ठावान् रहे और किसी भी परिस्थिति में उससे विचलित न हो ।
औरङ्गजेब सिक्ख-धर्म के विषय में राम राय से पर्याप्त जानकारी प्राप्त किया करता था। 'पवित्र ग्रन्थ' के प्रति उसके हृदय में आदर की भावना जाग्रत हो उठी थी। उसके विचारानुसार सिक्खों के सिद्धान्त इस्लाम धर्म के सर्वथा अनुरूप थे। उसने एक दिन 'राग असा' नामक सिक्खों की एक धार्मिक पुस्तक में उल्लिखित एक विवरण का अर्थ समझना चाहा । उस विवरण में मृत्यु के उपरान्त किसी मुसलमान के दुःख-भोग का उल्लेख था जिसके अनुसार मुसलमान को कुम्भकार के लोष्ठ में डाल दिया जाता है जिससे मृत्तिका-पात्रों तथा ईंटों के ढाँचों का निर्माण होता है और लोष्ठ में जलते समय वह उच्च स्वर में क्रन्दन करता है। राम राय ने सोचा कि अपनी कट्टरता के कारण इसके यथार्थ वर्णन से सम्राट् की भावनाएँ आहत हो सकती हैं, अतः उसने उसकी सन्तुष्टि के लिए 'मुसलमान' शब्द के स्थान पर 'बेईमान' शब्द रख दिया ।
यह समाचार हर राय के कानों तक पहुँचा। उन्होंने कहा कि कोई भी नश्वर व्यक्ति गुरु नानक की वाणियों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता और यदि किसी ने ऐसा करने का दुस्साहस कर दिया है, तो वह उसे देखना तक नहीं चाहते। उन्होंने एक आदेश-पत्र के माध्यम से सिक्खों को सूचित कर दिया कि किसी भी सिक्ख को राम राय तथा उसकी सन्तान से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि उनके इस आदेश का उल्लंघन करने वाले को बहिष्कृत कर दिया जायेगा ।
गुरु ने कहा – “गुरुत्व की तुलना शेरनी के दूध से की जा सकती है जिसे स्वर्ण-पात्र में ही भरा जा सकता है । प्राणोत्सर्ग के लिए उद्यत व्यक्ति ही इसके उपभोग का अधिकारी है । राम राय को मेरे सम्मुख मत आने दो। उसे औरङ्गजेब के दरबार में रह कर प्रचुर धन राशि अर्जित करने दो।"
राम राय ने गुरु से क्षमा-याचना की। वह कीरतपुर में उनकी प्रतीक्षा करता रहा; किन्तु उसे क्षमा नहीं मिल सकी। वह उनसे भेंट करना चाहता था, किन्तु गुरु ने उसको इसकी अनुमति भी नहीं दी। उसे आदेश दिया गया कि वह शीघ्रातिशीघ्र कीरतपुर छोड़ दे ।
अपना अन्त निकट जान कर उन्होंने हरकिशन को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का अविलम्ब निश्चय कर लिया। प्रभावशाली व्यक्तियों की उपस्थिति में हर राय ने हरकिशन को उसकी बाल्यावस्था में ही गुरु-गद्दी पर पदासीन कर दिया। उन्होंने उसके समक्ष एक नारियल तथा पाँच पैसे रख कर उसकी चार बार परिक्रमा की। इसके पश्चात् उन्होंने उसके ललाट पर तिलक किया। लोगों ने खड़े हो कर उसके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की ।
१६६१ ई. में कीरतपुर में हर राय का बत्तीस वर्ष की आयु में देहान्त हो गया। वह गुरु-गद्दी पर सतरह वर्षों तक पदासीन रहे।
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FAQ
प्रश्न:गुरु हर राय कौन थे?
उत्तर:गुरु हर राय 17वीं सदी के प्रमुख सिख धर्माचार्य थे। उन्होंने सिख धर्म के महान गुरु गोबिंद सिंह के पिता थे।
प्रश्न:गुरु हरगोविन्द के पुत्र गुरुदित्ता कौन थे?
उत्तर:गुरुदित्ता गुरु हरगोविन्द के पुत्र थे और उनकी माता का नाम निहाल कौर था।
प्रश्न:गुरुदित्ता की अकाल मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर:गुरुदित्ता की अकाल मृत्यु हत्या के कारण हुई थी, जब उन्होंने गाय की जगह हिरण को मार दिया और उसकी हत्या की गई।
प्रश्न:गुरुदित्ता के विचारों के बारे में बताएं।
उत्तर:गुरुदित्ता विचारशील और आत्मनिर्भर व्यक्ति थे। वे अपने पिता के विरोध में चमत्कार नहीं करना चाहते थे, लेकिन उनकी मृत्यु से वे मर्मभेदी हो गए और अपने जीवन का अंत समर्पित करने के लिए तैयार हो गए।
प्रश्न:गुरु हर राय और दाराशिकोह के संबंध कैसे थे?
उत्तर: गुरु हर राय ने दाराशिकोह को सिंघों के विरुद्ध अपना सहयोग दिया था।
प्रश्न:राजकुमार औरङ्गजेब के संबंध में बताएं।
उत्तर:राजकुमार औरङ्गजेब ने अपने अग्रज दाराशिकोह की हत्या के लिए गुरुदित्ता की मानवीयता और धर्म की ओर इशारा किया था।
प्रश्न:गुरु हर राय के अंतिम दिनों के बारे में बताएं।
उत्तर: गुरु हर राय ने अपने अंतिम दिनों में हरकिशन को अपने उत्तराधिकारी नियुक्त किया और वे सिखों को धर्म की शिक्षा देते हुए दुनिया को छोड़ दी।
प्रश्न:गुरुदित्ता की मृत्यु के पीछे के कारण और परिणाम के बारे में बताएं।
उत्तर:गुरुदित्ता की मृत्यु के पीछे उनके कारणों में गाय की हत्या का मामूल्य योगदान था, जो उनकी विश्वासों और मूल्यों के खिलाफ था। इससे गुरुदित्ता के परिवार और समर्थ सिख समुदाय को कई प्रकार के परिणामों का सामना करना पड़ा।
प्रश्न:गुरु हर राय की महत्वपूर्ण यात्राएं और कार्यक्षेत्रों के बारे में बताएं।
उत्तर: गुरु हर राय ने सिख समुदाय को सामाजिक सुधार, धर्मिक शिक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में मार्गदर्शन किया। उन्होंने सिखों के लिए स्थायित समाज और आराम्भिक संगठन की योजना बनाई और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न:गुरु हर राय की उपलब्धियाँ और योगदान क्या थे?
उत्तर:गुरु हर राय ने सिख धर्म को मजबूत आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ाया और सिख समुदाय को आत्मनिर्भरता और गरिमा की भावना प्रदान की। उन्होंने भारतीय समाज को सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से सुधारने के लिए उत्साहित किया।
प्रश्न:गुरु हर राय के बारे में अधिक जानकारी कहाँ मिलेगी?
उत्तर:गुरु हर राय के बारे में अधिक जानकारी सिख धर्म के ऐतिहासिक पाठकों, विशेषज्ञों और साहित्य स्रोतों से प्राप्त की जा सकती है। सिख गुरुओं के जीवन, कार्य, और सिख धर्म के बारे में पुस्तकें और वेबसाइटें आपको उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकती हैं।
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